भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आज / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा | |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatRajasthaniRachna}} | |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | < | + | <poem> |
− | + | ||
डर भूत सूं | डर भूत सूं | ||
का पछै भूत हुवणै सूं | का पछै भूत हुवणै सूं | ||
पंक्ति 23: | पंक्ति 22: | ||
अबै हांसणो का रोवणो | अबै हांसणो का रोवणो | ||
आपरै सारू है। | आपरै सारू है। | ||
− | + | </poem> | |
− | </ | + |
09:41, 17 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
डर भूत सूं
का पछै भूत हुवणै सूं
आज रा नगाड़ा बाजै
आखै जग में
आली माटी सूं
घरमाटिया मांडतै टाबर रो
हरख-उछब
आज है,
अतीत रा ढूंढ़ा
अर भविस रा म्हैल-माळिया
पीड़ रा परनाळा।
अबै हांसणो का रोवणो
आपरै सारू है।