भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
डर भूत सूं
का पछै भूत हुवणै सूं
आज रा नगाड़ा बाजै
आखै जग में
आली माटी सूं
घरमाटिया मांडतै टाबर रो
हरख-उछब
आज है,
अतीत रा ढूंढ़ा
अर भविस रा म्हैल-माळिया
पीड़ रा परनाळा।
अबै हांसणो का रोवणो
आपरै सारू है।