भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दोहे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र |संग्रह= }} {{KKCatDoha}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatDoha}} | {{KKCatDoha}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | आजीवन थे जो पिता, कल कल बहता | + | आजीवन थे जो पिता, कल कल बहता नीर। |
− | कैसे मानूँ आज वो, हैं केवल | + | कैसे मानूँ आज वो, हैं केवल तस्वीर॥ |
− | रहे सुवासित घर सदा, आँगन बरसे | + | रहे सुवासित घर सदा, आँगन बरसे नूर। |
− | माँ का पावन रूप है, जलता हुआ | + | माँ का पावन रूप है, जलता हुआ कपूर॥ |
− | हर लो सारे पुण्य पर, यह वर दो | + | हर लो सारे पुण्य पर, यह वर दो भगवान। |
− | बिटिया के मुख पे रहे, जीवन भर | + | बिटिया के मुख पे रहे, जीवन भर मुस्कान॥ |
− | नथ, बिंदी, बिछुवा नहीं, बनूँ न कंगन | + | नथ, बिंदी, बिछुवा नहीं, बनूँ न कंगन हाथ। |
− | बस चंदन बन अंत में, जलूँ | + | बस चंदन बन अंत में, जलूँ तुम्हारे साथ॥ |
− | दीप कुटी का सोचता, लौ सब एक | + | दीप कुटी का सोचता, लौ सब एक समान। |
− | राजमहल के दीप को, क्यूँ इतना | + | राजमहल के दीप को, क्यूँ इतना अभिमान॥ |
− | जाति पाँति के फेर में, वंश न करिये | + | जाति पाँति के फेर में, वंश न करिये तंग। |
− | नया रंग पैदा करें, जुदा जुदा दो | + | नया रंग पैदा करें, जुदा जुदा दो रंग॥ |
</poem> | </poem> |
10:34, 12 अगस्त 2014 के समय का अवतरण
आजीवन थे जो पिता, कल कल बहता नीर।
कैसे मानूँ आज वो, हैं केवल तस्वीर॥
रहे सुवासित घर सदा, आँगन बरसे नूर।
माँ का पावन रूप है, जलता हुआ कपूर॥
हर लो सारे पुण्य पर, यह वर दो भगवान।
बिटिया के मुख पे रहे, जीवन भर मुस्कान॥
नथ, बिंदी, बिछुवा नहीं, बनूँ न कंगन हाथ।
बस चंदन बन अंत में, जलूँ तुम्हारे साथ॥
दीप कुटी का सोचता, लौ सब एक समान।
राजमहल के दीप को, क्यूँ इतना अभिमान॥
जाति पाँति के फेर में, वंश न करिये तंग।
नया रंग पैदा करें, जुदा जुदा दो रंग॥