{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
|संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त
}}
{{KKCatRajasthaniRachanaKKCatKavita}}{{KKCatKavitaKKCatRajasthaniRachna}}<poem> बै कैवण मेंसग्गा तो अवस कहिजै
पण जाबक ई नीं समझै
सग्गै तो संकट !रौ संकट।
छुछक, भात,उढावणीओढावणी अर दायजो
लेंवती बेळा
कदै ई कदेई नीं सोचै
कै सग्गो
कळीज तो नीं गयो
करज कर्ज रै कादै ! कादै।
</poem>