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सग्गा / निशान्त
Kavita Kosh से
बै
कैवण में सग्गा तो
अवस कहिजै
पण जाबक ई नीं समझै
सग्गै रौ संकट।
छुछक, भात, उढावणी
अर दायजो
लेंवती बेळा
कदेई नीं सोचै
कै सग्गो
कळीज तो नीं गयो
कर्ज रै कादै।