भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सग्गा / निशान्त" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=निशान्त | |रचनाकार=निशान्त | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=धंवर पछै सूरज / निशान्त |
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKCatRajasthaniRachna}} | {{KKCatRajasthaniRachna}} | ||
− | + | <poem> | |
− | <poem> | + | बै |
− | बै कैवण में | + | कैवण में सग्गा तो |
− | सग्गा तो अवस कहिजै | + | अवस कहिजै |
पण जाबक ई नीं समझै | पण जाबक ई नीं समझै | ||
− | सग्गै | + | सग्गै रौ संकट। |
− | छुछक, भात, | + | छुछक, भात, उढावणी |
− | + | अर दायजो | |
लेंवती बेळा | लेंवती बेळा | ||
− | + | कदेई नीं सोचै | |
कै सग्गो | कै सग्गो | ||
कळीज तो नीं गयो | कळीज तो नीं गयो | ||
− | + | कर्ज रै कादै। | |
</poem> | </poem> |
22:38, 30 अप्रैल 2015 के समय का अवतरण
बै
कैवण में सग्गा तो
अवस कहिजै
पण जाबक ई नीं समझै
सग्गै रौ संकट।
छुछक, भात, उढावणी
अर दायजो
लेंवती बेळा
कदेई नीं सोचै
कै सग्गो
कळीज तो नीं गयो
कर्ज रै कादै।