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रंग लगे अंग / जानकीवल्लभ शास्त्री
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08:40, 18 मई 2015
{{KKRachna
|रचनाकार=जानकीवल्लभ शास्त्री
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}}
<poem>
रंग लाए अंग चम्पई
:
::नई लता के
धड़कन बन तरु को
:
::अपराधिन-सी ताके
फड़क रही थी कोंपल
आँखुओं से ढक के
वासन्ती उझक झुकी,
: सिमटी सकुचा के
</poem>
Sharda suman
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