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अभी तक / गंगाराम परमार

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अन्धकार प्यार की भी जात है, तो अन्धकार बोल के तो देख अभी तकसरकार बहुत बड़ा आघात हैअभी तकरौशनी, तो सरकार बोल के तो देख अब तो मैदान खुला है तुम्हारे लिएफ़क़त मैदान रौशनी में हुआ, तलवार-तलवार बोल के तो देख उनके जूते का जूता बन नवो बोले, अब तोझूठ को झूठ और गद्दार को गद्दार बोल के तो देख देख सुबह खड़ी रात है तेरे सामने अभी तकतू ख़बरदार हैभूख, तो ख़बरदार बोल के तो देखरौशनी रौशनीभेद, भाषा, मैं दम-ब-दम हुआ भगवान तकसामने मेरे, रफ़्तारकितने सारे सवालात हैं अभी तकऊँच-रफ़्तार बोल के नीच तो देख रहेगा ही, यहाँकोई उनकी बिरादरी में बात है अभी तकसूरज किसी के बाप का नहीं आया चीर के हम भी आसमाँ यहाँसात हैं अभी तकएक बारन चाहो तो भी, अवतार-अवतार बोल के लड़ना पड़ेगा दोस्तलड़ाई तो देखउनकी सौग़ात है अभी तकज़िन्दगी भीख तुम्हें आदम नहीं, अधिकार हैमानते वोखुलेआम, अधिकारदाढ़ी-अधिकार बोल के तो देखचोटी की जमात है अभी तक।
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