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फूल-पात नहि चिन्हैत छी
बूझल नहि अछि
वृक्ष सभक, लोक सभकनाम बूझल नहि अछि
एतेक दिन एहि गाममे
एहि प्रकृतिसँ, एहि स्त्रीसँ, एहि नदीसँ
अपरिचिते रहि जाइ, ; एहि गामसं, गामसँ धामसँप्रवासी हैबाक होयवाक सभटा दुख, सभटा वेदना-हम एकसरे सहि जाइ, अपरिचिते रहि जाइ,एतेक दिन एहि गाममे अएना भ’ अयना भय गेल,
मुदा, चिन्हार नहि अछि विकालक
एहि अन्हारमे;अपने घर आँगन-आँगन।अपने घर -आँगनमे चिकरै चिकरइ छी
हम अपने टा नाम
प्रवासी, नगरवासी छी हम-ई उपरात दैत‘छिउपरागदैत अछि अपने -टा गामअपने-टा गाम ''(रामकृष्ण झा ‘किसुन’ सम्पादित ‘मैथिलीक नव कविता’सँ: 1997)''
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