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"तपस्या / निदा नवाज़" के अवतरणों में अंतर

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उस दिन मुक्ति।
 
उस दिन मुक्ति।
 
भीतर की टूट-फूट
 
भीतर की टूट-फूट
 
मैं जीवन पथ पर
 
चल रहा था अकेले
 
हर तरफ़ वीराना था
 
हर दिशा ख़ामोशी थी
 
एक शांति सी थी
 
और
 
अचानक सुनाइ दीं
 
कहीं से आवाज़ें
 
टूट-फूट की
 
मारा-मरी की
 
देखा चारों ओर मैंने
 
कहीं कोई न था
 
मेरे सिवा
 
कि वे आवाज़ें आरहीं थीं
 
मेरे ही भीतर से।
 
 
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12:37, 12 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

तुम
तुम तो मेरी आशा हो
और मैं...
मैं अब भी तुम से
निराश नहीं हूँ
ये जग वाले
जन्म-मरण के चक्कर से
चाहते मुक्ति
मेरी इच्छा है
जन्म-मरण के चक्कर की
बस तेरे लिए
ताकि
किसी भी जन्म में
पा तुमको सकूं
उस दिन होगी
सफल मेरी तपस्या
और मैं पाउँगा
उस दिन मुक्ति।
भीतर की टूट-फूट