भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तपस्या / निदा नवाज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम
तुम तो मेरी आशा हो
और मैं...
मैं अब भी तुम से
निराश नहीं हूँ
ये जग वाले
जन्म-मरण के चक्कर से
चाहते मुक्ति
मेरी इच्छा है
जन्म-मरण के चक्कर की
बस तेरे लिए
ताकि
किसी भी जन्म में
पा तुमको सकूं
उस दिन होगी
सफल मेरी तपस्या
और मैं पाउँगा
उस दिन मुक्ति।
भीतर की टूट-फूट