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दरख्तों को ढ़हना ढहना पसन्द नहीं<br>
वे उठते हैं ऊँचे फैलाव के साथ<br>
वे फैलते हैं पूरे फैलाव में<br>
वे पाँव पसारते हैं पूरी जमीन में<br>
भरपूर जमीनज़मीन, भरपूर आसमान<br>
भरपूर आसपास, पूरी तरह भरपूर<br>
जब कभी जमीन ज़मीन करवट लेती है<br>आसमान आखिरी बूँद बूंद तक पिघल जाता है<br>
आसपास बैगाना बन जाता है<br>
दरख्तों को ढ़हना पडता ढहना पड़ता है<br>ढ़हने ढहने से पहले वे<br>वे पखेरुओं को आशीष देते हैं<br>
लताओँ से विदा कहते हैं<br>
पत्तियों को झड झड़ जाने देतें हैं<br>
जडों में बिल बनाए साँपों का सिर<br>
हौले से सहला देते हैं<br>
वर्तमान को थर्राते हुए<br>
मुट्ठी भर माटी हाथ में लिए<br>
ढ़ह ढह जाते हैं भविष्य में
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