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आईना-दर-आईना / डी. एम. मिश्र

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/* रचनाएँ */
* [[खिली धूप से सीखा मैने खुले गगन में जीना / डी. एम. मिश्र]]
* [[देर से जाना उसे वो आदमी मक्कार हूँ / डी. एम. मिश्र]]
* [[फ़रेब, झूठ का मंज़र कभी नहीं देखा / डी. एम मिश्र]]
* [[काँटों की बस्ती फूलों की, खु़शबू से तर है / डी. एम. मिश्र]]
* [[गुलाबों की नर्इ क़िस्मों से वो खु़शबू नहीं आती /डी. एम मिश्र]]
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