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02:06, 2 जुलाई 2008 का अवतरण
भेद मैं तुम्हारे भीतर जाना चाहती हूं रहस्य घुंघराले केश हटा कर मैं तुम्हारा मुंह देखना चाहती हूं ज्ञान मैं तुमसे दूर जाना चाहती हूं निर्बोध निस्पंदता तक अनुभूति मुझे मुक्त करो आकर्षण मैं तुम्हारा विरोध करती हूं जीवन मैं तुम्हारे भीतर से चलकर आती हूं।