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+ | घृणा ही हो तो | ||
+ | जी सकता है कोई | ||
+ | जीवन अच्छा | ||
+ | किन्तु बुरा है होता | ||
+ | प्रेम का झूठा भ्रम | ||
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+ | तोड़ते नहीं | ||
+ | शीशा,तो क्या करते | ||
+ | सह न सके | ||
+ | दर्द-भरी झुर्रियाँ | ||
+ | किसी का उपहास | ||
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+ | भरी गागर | ||
+ | मेरी आँखों की प्रिय | ||
+ | कुछ कहती, | ||
+ | जीवन पीड़ा सहती | ||
+ | लज्जित, न बहती | ||
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+ | एक डोरी हो- | ||
+ | जिस पर फैलाऊँ | ||
+ | रंग-बिरंगे | ||
+ | उजले-नीले-पीले | ||
+ | सतरंगी सपने । | ||
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+ | रजनीगंधा | ||
+ | रात के पृष्ठों पर | ||
+ | तुम करती | ||
+ | खुशबू बिखेरते | ||
+ | सशक्त हस्ताक्षर । | ||
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01:57, 30 जून 2018 के समय का अवतरण
14
खोला द्वार यूँ
बोझिल पलकों से,
नशे में चूर
कदमों के लिए भी,
मंदिर के जैसे ही।
15
टूटना-पीड़ा
उससे भी अधिक
पीड़ादायी है
टूटने-जुड़ने का
विवश सिलसिला
16
घृणा ही हो तो
जी सकता है कोई
जीवन अच्छा
किन्तु बुरा है होता
प्रेम का झूठा भ्रम
17
तोड़ते नहीं
शीशा,तो क्या करते
सह न सके
दर्द-भरी झुर्रियाँ
किसी का उपहास
18
भरी गागर
मेरी आँखों की प्रिय
कुछ कहती,
जीवन पीड़ा सहती
लज्जित, न बहती
19
एक डोरी हो-
जिस पर फैलाऊँ
रंग-बिरंगे
उजले-नीले-पीले
सतरंगी सपने ।
20
रजनीगंधा
रात के पृष्ठों पर
तुम करती
खुशबू बिखेरते
सशक्त हस्ताक्षर ।
-०-