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कई रात से नींद आयी नहीं है
दवा भी कोई हमने खायी नहीं है
ज़रूरत पे हम झूठ भी बोल लेते
तेरी याद वर्षों से आयी नहीं है
 
पता है हमें रंग चेहरे का अपने
नज़र आईने से मिलायी नहीं है
 
छुओ मत इसे दूर से सिर्फ़ देखो
ये आँसू है मक्खन मलाई नहीं है
 
ज़माने से दिल में सुलगती रही जो
वही बात होठों पे आयी नहीं है
 
गरेबाँ हमारा पकड़कर वो बोला
मुहब्बत है ये भी लड़ाई नहीं है
 
चलो चार-छै दिन अलग रह के देखें
तड़पने में कोई बुराई नहीं है
</poem>
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