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Kavita Kosh से
हम जब नहीं होंगे
हमारी फ्ऱेम फ़्रेम से देखेगी दुनिया पातीयह भी सम्भव है तब पुरानी हो जाए हमारी फ्ऱेमफ़्रेम
या फिर देखने का तरीक़ा ही