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चश्मा / विनोद विट्ठल
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1.
खोई हुई आँखें हैं
ढूँढ़कर इन्हें आँखें पा लेती हैं खु़द को
हासिल कर लेती है हौंसला
देखने लगती हैं साफ़-साफ़
2.
हथियार है उसके विरुद्ध
जो होकर नहीं दिखता
जो छिपना चाहता है
3.
एक देहरी है जिसे पार करते
मैं पा लेता हूँ अपनी दुनिया
पुल है प्रेम का जो ले जाता है मुझे दूसरी दुनिया में
माँ की आँखें हैं मुझसे जुड़ती हुई
पिता की सीख है बोलती हुई
4.
कितना बड़ा है
समा जाती है पूरी दुनिया, इसके रँग
5.
हम जब नहीं होंगे
हमारी फ़्रेम से देखेगी दुनिया पाती
यह भी सम्भव है तब पुरानी हो जाए हमारी फ़्रेम
या फिर देखने का तरीक़ा ही
6.
चश्मा वसीयत के बाहर की अनलिखी पँक्ति है
जिसे बिना चश्मे कोई नहीं पढ़ सकेगा