{{KKRachna
|रचनाकार=बोधिसत्व
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<poem>
छोटी-छोटी बातों पर
नाराज हो जाता हूँ,
भूल नहीं पाता हूँ कोई उधार,
जोड़ता रहता हूँ
पाई-पाई का हिसाब
छोटा आदमी हूँ
बड़ी बातें कैसे करूँ ?
छोटी-छोटी बातों माफ़ी माँगने पर<br>भीनाराज हो जाता माफ़ नहीं कर पाता हूँ ,<br>भूल छोटे-छोटे दुखों से उबर नहीं पाता हूँ कोई उधार,<br>जोड़ता रहता हूँ<br>पाई-पाई का हिसाब<br><br>।
छोटा आदमी हूँ<br>पाव भर दूध बिगड़ने परबड़ी बातें कैसे करूँ ?<br><br>कई दिन फटा रहता है मन,कमीज़ पर नन्हीं खरोंचदेह के घाव से ज़्यादादेती है दुख ।
माफी मांगने पर भी<br>एक ख़राब मूलीमाफ़ बिगाड़ देती है खाने का स्वादएक चिट्ठी का जवाब नहीं कर पाता हूँ<br>छोटे-छोटे दुखों से उबर नहीं पाता देने को याद रखता हूँ ।<br><br>उम्र भर
पाव भर दूध बिगड़ने पर<br>कई दिन फटा रहता है मनछोटा आदमी हूँ,<br>और कर ही क्या सकता हूँकमीज पर नन्हीं खरोंच<br>देह सिवाय छोटी-छोटी बातों को याद रखने के घाव से ज्यादा<br>देती है दुख ।<br><br>
एक ख़राब मूली<br>सौ ग्राम हल्दी,बिगाड़ देती है खाने का स्वाद<br>पचास ग्राम जीराएक चिट्ठी का जवाब छींट जाने से तबाह नहीं<br>होती ज़िन्दगी,देने पर क्या करूँछोटे-छोटे नुक़सानों को याद रखता हूं उम्र भर<br><br>गाता रहता हूँहर अपने बेगाने को सुनाता रहता हूँअपने छोटे-छोटे दुख ।
छोटा क्षुद्र आदमी और कर ही क्या सकता हूँ<br>सिवाय इनकार नहीं करता,एक छोटा सा ताना,एक मामूली बात,एक छोटी-छोटी बातों को याद रखने सी गालीएक ज़रा सी घातकाफ़ी है मुझे मिटाने के ।<br><br>लिए,
सौ ग्राम हल्दी,<br>पचास ग्राम जीरा<br>छींट जाने से तबाह नहीं होती ज़िंदगी,<br>पर क्या करूँ<br>छोटे-छोटे नुकसानों को गाता रहता मैं बहुत कम तेल वाला दीया हूँ<br>हर अपने बेगाने को सुनाता रहता हूँ<br>हलकी हवा भी बहुत हैअपने छोटे-छोटे दुख मुझे बुझाने के लिए ।<br><br>
क्षुद्र आदमी छोटा हूँ<br>इन्कार नहीं करता,<br>एक छोटा सा तानापर रहने दो,<br>एक मामूली बात,<br>एक छोटी सी गाली<br>एक जरा सी घात<br>काफी है मुझे मिटाने के लिए,<br><br>-छोटी बातें कहता हूँ — कहने दो ।
मैं बहुत कम तेल वाला दीया हूँ<br>'''अब इस कविता का राजस्थानी भावानुवाद पढ़िए'''हल्की हवा भी बहुत है<br> बोधिसत्व मुझे बुझाने के लिए।<br><br> छोटौ मनक
छोटा हूँ,<br>चिनीक चिनीक बातां माथै पर रहने दो,<br>रीसांणौ व्है जावूं अर छोटीबिसार नीं पावूं जद तांईं चुकारौ नीं कर देवूं उधरत रौ खतावतौ रैवूं पाई पाई रौ हिसाब छोटौ मनक हूं मोटी बातां कीकर पार पड़ै पगां पड़ियां ई किणी नै को बकस पावूं नीं म्हैं नैनै -छोटी बातें कहता हूँमोटै विखां सूं कठै व्है है म्हारौ ऊबरांण अदोळी - कहने दो अदोळी भर दूध फाटियां ईकेई दाड़ा तांईं फाटियोड़ौ रैवै म्हारौ मन बंडा रै अटक्यां जे कठैई व्है जावै तीणौ तौराधोड़ भरियै फोड़ै सूं ई बती चालै है चीस म्हारै ठेठ काळजै मांय एक सूगली मूळी विगाड़ देवै आखै जीमण रौ जायकौ एक चिट्ठी रौ पड़ूत्तर नीं देवण नैचितारतौ रैवूं उमर भर तांईं छोटौ मनक वळै कर ई कांईं सकै है सिवाय चिनीक चिनीक बातां नै चितारण रै आधौ पावैक हळदी आधी लपैक जीरौ छींटणै सूं जिनगांणी को विरोळीजै नीं पण कांईं करूं लखणां रौ लाडौ हूं चिन्याक चिन्याक नुकसांणा नै लेय'र ईबावळौ व्हियौ डाडतौ फिरूं आपरा देखूं नीं परायां नै आपरै टटपूंज्यां दुखां नै लेय'र छोटी औकात रौ मनक हूं इण सूं कठै नटू हूं एक छोटौसोक तांनौ एक मांमूलीसीक बात एक अबकीसीक गाळ एक हबकीसीक घात घणां ई है म्हनै मिटावण सारू म्हैं साव ई कम तेल आळौ दीयौ हूं वायरै री झोंक ई घणी है म्हनै वडौ करण सारू छोटौ मनक हूं पण रैवण देवौ चिनीक चिनीक बातां कैवूं तौ कैवण देवौ ।<br><br/poem>