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छोटा आदमी / बोधिसत्व

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छोटी-छोटी बातों पर
नाराज हो जाता हूँ,
भूल नहीं पाता हूँ कोई उधार,
जोड़ता रहता हूँ
पाई-पाई का हिसाब

छोटा आदमी हूँ
बड़ी बातें कैसे करूँ ?

माफ़ी माँगने पर भी
माफ़ नहीं कर पाता हूँ
छोटे-छोटे दुखों से उबर नहीं पाता हूँ ।

पाव भर दूध बिगड़ने पर
कई दिन फटा रहता है मन,
कमीज़ पर नन्हीं खरोंच
देह के घाव से ज़्यादा
देती है दुख ।

एक ख़राब मूली
बिगाड़ देती है खाने का स्वाद
एक चिट्ठी का जवाब नहीं
देने को याद रखता हूँ उम्र भर

छोटा आदमी हूँ, और कर ही क्या सकता हूँ
सिवाय छोटी-छोटी बातों को याद रखने के ।

सौ ग्राम हल्दी,
पचास ग्राम जीरा
छींट जाने से तबाह नहीं होती ज़िन्दगी,
पर क्या करूँ
छोटे-छोटे नुक़सानों को गाता रहता हूँ
हर अपने बेगाने को सुनाता रहता हूँ
अपने छोटे-छोटे दुख ।

क्षुद्र आदमी हूँ
इनकार नहीं करता,
एक छोटा सा ताना,
एक मामूली बात,
एक छोटी सी गाली
एक ज़रा सी घात
काफ़ी है मुझे मिटाने के लिए,

मैं बहुत कम तेल वाला दीया हूँ
हलकी हवा भी बहुत है
मुझे बुझाने के लिए ।

छोटा हूँ,
पर रहने दो,
छोटी-छोटी बातें कहता हूँ — कहने दो ।

अब इस कविता का राजस्थानी भावानुवाद पढ़िए
         बोधिसत्व
       छोटौ मनक

चिनीक चिनीक बातां माथै
रीसांणौ व्है जावूं अर
बिसार नीं पावूं
जद तांईं चुकारौ नीं कर देवूं उधरत रौ
खतावतौ रैवूं पाई पाई रौ हिसाब

छोटौ मनक हूं
मोटी बातां कीकर पार पड़ै

पगां पड़ियां ई
किणी नै को बकस पावूं नीं म्हैं
नैनै - मोटै विखां सूं
कठै व्है है म्हारौ ऊबरांण

अदोळी - दो अदोळी भर दूध फाटियां ई
केई दाड़ा तांईं फाटियोड़ौ रैवै म्हारौ मन
बंडा रै अटक्यां जे कठैई व्है जावै तीणौ तौ
राधोड़ भरियै फोड़ै सूं ई बती चालै है चीस
म्हारै ठेठ काळजै मांय

एक सूगली मूळी
विगाड़ देवै आखै जीमण रौ जायकौ
एक चिट्ठी रौ पड़ूत्तर नीं देवण नै
चितारतौ रैवूं उमर भर तांईं

छोटौ मनक वळै कर ई कांईं सकै है
सिवाय चिनीक चिनीक बातां नै चितारण रै

आधौ पावैक हळदी
आधी लपैक जीरौ
छींटणै सूं जिनगांणी को विरोळीजै नीं

पण कांईं करूं
लखणां रौ लाडौ हूं
चिन्याक चिन्याक नुकसांणा नै लेय'र ई
बावळौ व्हियौ डाडतौ फिरूं
आपरा देखूं नीं परायां नै
आपरै टटपूंज्यां दुखां नै लेय'र

छोटी औकात रौ मनक हूं
इण सूं कठै नटू हूं
एक छोटौसोक तांनौ
एक मांमूलीसीक बात
एक अबकीसीक गाळ
एक हबकीसीक घात
घणां ई है म्हनै मिटावण सारू

म्हैं साव ई कम तेल आळौ दीयौ हूं
वायरै री झोंक ई घणी है
म्हनै वडौ करण सारू

छोटौ मनक हूं
पण रैवण देवौ
चिनीक चिनीक बातां
कैवूं तौ कैवण देवौ ।

हिन्दी कवितावां रौ राजस्थानी उल्थौ : मीठेस निरमोही