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"चरखण्डीको खोंच / युद्धप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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17:47, 2 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण
लहलह पल्लव हरित लताको,
छाया स्वर्गिक शीतल रुखको,
कुञ्ज छ मन्दिर चिडियाहरुको,
कलकल गान छ निर्मल जलको ।
१
गिरिको गहिरो-अन्तर-तट छ,
जल यो छलबल छलबल चलछ,
यो छलबलमा रुखको हरियो,
छाया तिरिमिरि तिरिमिरि छरियो ।
२
निर्मल जलको पतला सारी
टलपल टलपल सर्र लतारी,
कोमल झ्याउ, पत्थर हरिला,
सज्जित जलको चोली हीला ।
३
कहिले वारी, कहिले पारी,
फर फर उड्दै पंख फिंजारी,
बनन विहङ्गम बारमबार,
निर्मल जलको रंगिन हार ।
४
चरखण्डी यो सुन्दर छाडी,
झटपट झटपट व्यर्थ अगाडी,
काइ परेका चिपला पत्थर,
बाट झर्यौ किन झरझर झरझर ?
(‘शारदा‘ बाट)
(नोट- पं. बदरीनाथद्वारा सम्पादित पुस्तक पद्यसङ्ग्रह बाट भाषाका तत्कालिन मान्यतालाई यथावत राखी जस्ताको तस्तै टङ्कण गरी सारिएको)