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"गले लगाएँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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('1 तुम छाया हो जीवन की धूप में मन, काया हो। 2 शीत भीषण का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
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|रचनाकार=  रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'   
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तुम छाया हो
 
तुम छाया हो
 
जीवन की धूप में
 
जीवन की धूप में
 
मन, काया हो।
 
मन, काया हो।
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शीत भीषण
 
शीत भीषण
 
काँप जब वजूद,
 
काँप जब वजूद,
 
तुम हो धूप।
 
तुम हो धूप।
3
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47
 
मिटता वैभव
 
मिटता वैभव
 
जर्जर होती काया
 
जर्जर होती काया
 
प्यार न मिटे।
 
प्यार न मिटे।
4
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एक छुअन
 
एक छुअन
 
हौले लिया चुम्बन
 
हौले लिया चुम्बन
 
प्राण जगाए।
 
प्राण जगाए।
5
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कितना दिया !
 
कितना दिया !
 
पिलाया मधुरस!
 
पिलाया मधुरस!
 
जाने ये हिया।
 
जाने ये हिया।
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50
 
देती है ऊर्जा
 
देती है ऊर्जा
 
तेरी वे प्रार्थनाएँ
 
तेरी वे प्रार्थनाएँ
 
गले लगाएँ।
 
गले लगाएँ।
7
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शब्दों में रस
 
शब्दों में रस
 
दृष्टि में मधु स्पर्श
 
दृष्टि में मधु स्पर्श
 
तुझसे पाया।  
 
तुझसे पाया।  
  
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18:33, 8 जनवरी 2021 का अवतरण

 
45
तुम छाया हो
जीवन की धूप में
मन, काया हो।
47
शीत भीषण
काँप जब वजूद,
तुम हो धूप।
47
मिटता वैभव
जर्जर होती काया
प्यार न मिटे।
48
एक छुअन
हौले लिया चुम्बन
प्राण जगाए।
49
कितना दिया !
पिलाया मधुरस!
जाने ये हिया।
50
देती है ऊर्जा
तेरी वे प्रार्थनाएँ
गले लगाएँ।
51
शब्दों में रस
दृष्टि में मधु स्पर्श
तुझसे पाया।