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"शोभा-यात्रा / अमरनाथ श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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प्रत्यंचित भौंहों के आगे
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प्रत्यञ्चित भौंहों के आगे
समझौते केवल समझौते।
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समझौते केवल समझौते ।
  
::भीतर चुभन सुई की,
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        भीतर चुभन सुई की,
::बाहर सन्धि-पत्र पढ़ती मुस्कानें।
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        बाहर सन्धि-पत्र पढ़ती मुस्कानें ।
::जिस पर मेरे हस्ताक्षर हैं,
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        जिस पर मेरे हस्ताक्षर हैं,
::कैसे हैं ईश्वर ही जाने।
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        कैसे हैं ईश्वर ही जाने ।
  
आंधी से आतंकित चेहरे
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आँधी से आतंकित चेहरे
गर्दख़ोर रंगीन मुखौटे।
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गर्दख़ोर रंगीन मुखौटे ।
  
::जी होता आकाश-कुसुम को,
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        जी होता आकाश-कुसुम को,
::एक बार बाहों में भर लें।
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        एक बार बाँहों में भर लें ।
::जी होता एकान्त क्षणों में
+
        जी होता एकान्त क्षणों में
::अपने को सम्बोधित कर लें।
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        अपने को सम्बोधित कर लें ।
  
 
लेकिन भीड़ भरी गलियाँ हैं
 
लेकिन भीड़ भरी गलियाँ हैं
काग़ज़ के फूलों के न्योते।
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काग़ज़ के फूलों के न्योते ।
  
::झेल रहा हूँ शोभा-यात्रा
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        झेल रहा हूँ शोभा-यात्रा
::में चलते हाथी का जीवन।
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        में चलते हाथी का जीवन ।
::जिसके ऊपर मोती की झालर
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        जिसके ऊपर मोती की झालर
::लेकिन अंकुश का शासन।
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        लेकिन अंकुश का शासन ।
  
 
अधजल घट से छलक रहे हैं
 
अधजल घट से छलक रहे हैं
पीठ चढ़े जो सजे कठौते।
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पीठ चढ़े जो सजे कठौते ।
 
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17:25, 28 मार्च 2021 के समय का अवतरण

प्रत्यञ्चित भौंहों के आगे
समझौते केवल समझौते ।

         भीतर चुभन सुई की,
         बाहर सन्धि-पत्र पढ़ती मुस्कानें ।
         जिस पर मेरे हस्ताक्षर हैं,
         कैसे हैं ईश्वर ही जाने ।

आँधी से आतंकित चेहरे
गर्दख़ोर रंगीन मुखौटे ।

         जी होता आकाश-कुसुम को,
         एक बार बाँहों में भर लें ।
         जी होता एकान्त क्षणों में
         अपने को सम्बोधित कर लें ।

लेकिन भीड़ भरी गलियाँ हैं
काग़ज़ के फूलों के न्योते ।

         झेल रहा हूँ शोभा-यात्रा
         में चलते हाथी का जीवन ।
         जिसके ऊपर मोती की झालर
         लेकिन अंकुश का शासन ।

अधजल घट से छलक रहे हैं
पीठ चढ़े जो सजे कठौते ।