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{{KKRachna
|रचनाकार=जहीर कुरैशी
|अनुवादक=|संग्रह=}} {{KKCatGhazal}}<poem>अँधेरे की सुरंगों से निकल करगए सब रोशनी की ओर चलकर
अँधेरे की सुरंगों से निकल कर<br>खड़े थे व्यस्त अपनी बतकही मेंगए सब रोशनी की ओर चलकर<br><br>तो खींचा ध्यान बच्चे ने मचलकर
खड़े थे व्यस्त अपनी बतकही में<br>तो खींचा ध्यान बच्चे जिन्हें जनता ने मचलकर<br><br>खारिज कर दिया थासदन में आ गए कपड़े बदलकर
जिन्हें जनता ने खारिज कर दिया था<br>अधर से हो गई मुस्कान ग़ायबसदन में आ गए कपड़े बदलकर<br><br>दिखाना चाहते हैं फूल—फलकर
अधर लगा पानी के छींटे से हो गई मुस्कान ग़ायब<br>ही अंकुशदिखाना चाहते हैं फूल—फलकर<br><br>निरंकुश दूध हो बैठा, उबलकर
लगा पानी कली के छींटे से ही अंकुश<br>प्यार में मर—मिटने वालेनिरंकुश दूध हो बैठा, उबलकर<br><br>कली को फेंक देते हैं मसलकर
कली के प्यार में मर—मिटने वाले<br>कली को फेंक देते हैं मसलकर<br><br> घुसे जो लोग काजल—कोठरी में<br>
उन्हें चलना पड़ा बेहद सँभलकर
</poem>
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