Last modified on 20 अप्रैल 2021, at 22:48

अँधेरे की सुरंगों से निकल कर / जहीर कुरैशी

अँधेरे की सुरंगों से निकल कर
गए सब रोशनी की ओर चलकर

खड़े थे व्यस्त अपनी बतकही में
तो खींचा ध्यान बच्चे ने मचलकर

जिन्हें जनता ने खारिज कर दिया था
सदन में आ गए कपड़े बदलकर

अधर से हो गई मुस्कान ग़ायब
दिखाना चाहते हैं फूल—फलकर

लगा पानी के छींटे से ही अंकुश
निरंकुश दूध हो बैठा, उबलकर

कली के प्यार में मर—मिटने वाले
कली को फेंक देते हैं मसलकर

घुसे जो लोग काजल—कोठरी में
उन्हें चलना पड़ा बेहद सँभलकर