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"आँखाभित्र बिलाउँदैन / कृष्णप्रसाद पराजुली" के अवतरणों में अंतर
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08:28, 8 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
आँखाभित्र बिलाउँदैन जति, भाषाभेष
म त आएँ विदेशबाट सम्झी आफ्नै देश
चिल्ला चौडा बाटा देखेँ
आकाश ताक्ने घर
जस्तो देखे पनि मैले
सम्झेँ गाउँघर
हामी उठौँ विकासमा छाड्नु पर्यो रेस
म त आएँ विदेशबाट सम्झी आफ्नै देश
सातै सागर तरी गएँ
पातालभूमि टेकेँ
छक्कै पार्ने झिलिमिली
संसार नौलो देखें
गोडा उनै, हात उनै -कामै गर्नु बेस
म त आएँ विदेशबाट सम्झी आफ्नै देश ।