|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
संसृति के विस्तृत सागर में
सपनों की नौका के अंदर
दुख सुख की लहरों मे उठ गिर
बहता जाता, मैं सो जाता ।
संस्रिति के विस्त्रित सागर मे<br>आँखों में भरकर प्यार अमरसपनो कि नौका के अंदर<br>आशीष हथेली में भरकरदुख सुख कि लहरों मे उठ गिर<br>कोई मेरा सिर गोदी में रखबहता जातासहलाता, मैं सो जाता ।<br>
मेरे जीवन का खारा जल
मेरे जीवन का हालाहल
कोई अपने स्वर में मधुमय कर
बरसाता मैं सो जाता ।
आँखों मे भरकर प्यार अमर<br>आशीष हथेली मे भरकर<br>कोई मेरा सिर गोदी मे रख<br>सहलाता, गाता मैं सो जाता ।<br> मेरे जीवन का खाराजल<br>मेरे जीवन का हालाहल<br>कोई अपने स्वर मे मधुमय कर<br>बरसाता मैं सो जाता ।<br> कोई गाता मैं सो जाता<br>मैं सो जाता<br>मैं सो जाता<br/poem>