भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

को‌ई गाता मैं सो जाता / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

संसृति के विस्तृत सागर में
सपनों की नौका के अंदर
दुख सुख की लहरों मे उठ गिर
बहता जाता, मैं सो जाता ।

आँखों में भरकर प्यार अमर
आशीष हथेली में भरकर
को‌ई मेरा सिर गोदी में रख
सहलाता, मैं सो जाता ।

मेरे जीवन का खारा जल
मेरे जीवन का हालाहल
को‌ई अपने स्वर में मधुमय कर
बरसाता मैं सो जाता ।

को‌ई गाता मैं सो जाता
मैं सो जाता
मैं सो जाता