"एक कहानी / प्रताप सहगल" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रताप सहगल }} <poem> मेरे पिता ने मुझे एक कहानी सुना...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 62: | पंक्ति 62: | ||
कि इस कहानी के अंतिम अंश को | कि इस कहानी के अंतिम अंश को | ||
आप सच न मानें | आप सच न मानें | ||
− | यह मात्र मेरी सदइच्छा | + | यह मात्र मेरी सदइच्छा है। |
</poem> | </poem> |
21:16, 25 अप्रैल 2009 का अवतरण
मेरे पिता ने मुझे एक कहानी सुनाई
एक कव्वा पेड़ पर बैठा था
उसकी चोंच में रोटी का टुकड़ा था
नीचे से गुज़रती एक लोमड़ी ने
कव्वे की चोंच में रोटी का टुकड़ा देखा
उसने कहा- 'कव्वे ! कव्वे ! तुम बहुत अच्छा गाते हो'
कव्वे ने काँव-काँव करना शुरु कर दिया
रोटी का टुकड़ा नीचे गिरा
और लोमड़ी उठा कर भाग गई।
मैंने अपने बेटे को कहानी सुनाई
एक कव्वा पेड़ पर बैठा था
उसकी चोंच में रोटी का टुकड़ा था
नीचे से गुज़रती एक लोमड़ी ने
कव्वे की चोंच में रोटी का टुकड़ा देखा
उसने कहा - 'कव्वे ! कव्वे ! तुम बहुत अच्छा गाते हो'
कव्वे ने रोटी के टुकड़े को चोंच से निकाल कर
अपने पंजे के नीचे दबा लिया
और काँव-काँव करने लगा।
मेरे बेटे ने अपने बेटे को कहानी सुनाई
एक कव्वा पेड़ पर बैठा था
उसकी चोंच में रोटी का टुकड़ा था
पेड़ के नीचे से गुज़रती एक लोमड़ी ने
कव्वे की चोंच में रोटी का टुकड़ा देखा
उसने कहा, 'कव्वे ! कव्वे ! तुम बहुत अच्छा गाते हो'
कव्वे ने रोटी के टुकड़े को इत्मीनान से खाया
और काँव काँव करने लगा।
मेरे पोते ने अपने बेटे को कहानी सुनाई
एक कव्वा पेड़ पर बैठा था
उसकी चोंच में रोटी का टुकड़ा था
पेड़ के नीचे से गुज़रती एक लोमड़ी ने
कव्वे की चोंच में रोटी का टुकड़ा देखा
उसने कहा- 'कव्वे! कव्वे! तुम बहुत अच्छा गाते हो'
कव्वे ने सुना
और रोटी का टुकड़ा चोंच में दबाए
पेड़ से उड़ गया
यह कहानी पीढी दर पीढ़ी चलती रही
अंततः यूँ हुआ
एक कव्वा पेड़ पर बैठा था
उसकी चोंच में रोटी का टुकड़ा था
पेड़ के नीचे से गुज़रती एक लोमड़ी ने
कव्वे की चोंच में रोटी का टुकड़ा देखा
उसने कहा- 'कव्वे ! कव्वे! तुम बहुत अच्छा गाते हो'
कव्वे ने सुना
उसकी आँखों ने कुछ देखा
और वह रोटी का टुकड़ा चोंच में दबाए
पेड़ से उड़ गया
लोमड़ी दुविधा की हालत में खड़ी ही थी
कि कव्वा दल-बल सहित लौट आया
और उन्होंने लोमड़ी पर हल्ला बोल दिया
बस आपसे एक विनती है
कि इस कहानी के अंतिम अंश को
आप सच न मानें
यह मात्र मेरी सदइच्छा है।