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|रचनाकार=केशवसुदर्शन वशिष्ठ|संग्रह=अलगाव सिंदूरी साँझ और ख़ामोश आदमी / केशवसुदर्शन वशिष्ठ
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या बहुत हुआ तो आँगन
ही है उसका संसार।
 
माँ करती है बेटे का इंतज़ार
पत्नि पति का , भाई का बहन
दहलीज़ लाँघना है
उनके लिए पहाड़ लाँघना।
उनके लिए आरक्षित हैं सीटें बरों में
सभाओं विधानसभाओं में
वे बन सकती हैं मॉडल विश्वसुन्दरियांविश्वसुन्दरियाँ
वे बन सकती हैं प्रधानमंत्री।
उन्हें नहीं जाना बाहर
उन्हें सिर्फ माँ बनना है
बहन बनना है बहु बनना है
उन्होंने इंतज़ार में छलछलानी हैं आँखें
पथरानी हैं
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