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09:40, 6 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
सहसा आपके आगे आ जाती है
वो मद्धम रहती है
और उसमें एक वीरानी है एक कोमल अहसास
उसमें उठने की आकांक्षा नहीं
वो धीमी गति से आपके दिल में उतरती रहती है
उतरती रहती है
जैसे कोई बिल्ली हो दबे पाँव
और शिकार होगा दिल
मैं कहूंगा आवाज़ में निष्कपटता है
और घिर जाऊंगा