भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घटना / शिवप्रसाद जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सहसा आपके आगे आ जाती है
वो मद्धम रहती है
और उसमें एक वीरानी है एक कोमल अहसास
उसमें उठने की आकांक्षा नहीं
वो धीमी गति से आपके दिल में उतरती रहती है
उतरती रहती है
जैसे कोई बिल्ली हो दबे पाँव
और शिकार होगा दिल

मैं कहूंगा आवाज़ में निष्कपटता है
और घिर जाऊंगा