भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चाय / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति }} <poem> तुम चुप थीं और ...)
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
  
 
बहुत देर तक चाय
 
बहुत देर तक चाय
जिन्दगी की उपेक्षा में ठंडी होती रही
+
ज़िन्दगी की उपेक्षा में ठंडी होती रही
 
फिर तुमने उंगली से चाय पर जमी परत हटा दी
 
फिर तुमने उंगली से चाय पर जमी परत हटा दी
 
मैंने कप को उठा कर ओंठों से लगा लिया
 
मैंने कप को उठा कर ओंठों से लगा लिया
 
</poem>
 
</poem>

15:44, 12 अक्टूबर 2009 का अवतरण

तुम चुप थीं और मैं भी चुप था
हमारे बीच चाय का कप था
धूप का सुनहरा रंग लिए
उसकी सुनहरी किनार पर
तुम्हारी आँखें चमक रही थीं

बहुत देर तक चाय
ज़िन्दगी की उपेक्षा में ठंडी होती रही
फिर तुमने उंगली से चाय पर जमी परत हटा दी
मैंने कप को उठा कर ओंठों से लगा लिया