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"तुम्हारा हृदय / अजन्ता देव" के अवतरणों में अंतर

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प्राप्त करने तुम्हारा हृदय ।
 
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11:23, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

क्या तुम्हारा हृदय तुम्हारा है
अब भी
जबकि तुम्हारे सामने मैं हूँ

जो अलक-पलक चुरा लेती है
हृदय ही नहीं सम्पूर्ण पुरुष
सप्तपदी में ऎसे ही नहीं कहती धर्मपत्नी

यद इयं हृदयं तव
तद इयं हृदयं मम

उसे हर युग में आना पड़ता है
मेरे पास
प्राप्त करने तुम्हारा हृदय ।