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तुम्हारा हृदय / अजन्ता देव
Kavita Kosh से
क्या तुम्हारा हृदय तुम्हारा है
अब भी
जबकि तुम्हारे सामने मैं हूँ
जो अलक-पलक चुरा लेती है
हृदय ही नहीं सम्पूर्ण पुरुष
सप्तपदी में ऎसे ही नहीं कहती धर्मपत्नी
यद इयं हृदयं तव
तद इयं हृदयं मम
उसे हर युग में आना पड़ता है
मेरे पास
प्राप्त करने तुम्हारा हृदय ।