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"शांति / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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एक निराश पहाड़ी की गोद से
 
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टूट
 
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21:14, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

एक निराश पहाड़ी की गोद से
टूट
बिखरता-सा नन्हा झरना ।
ना,
वापिस लौटने की कोशिश में
आगे
सदा आगे
बढती ही चली जाती नदी ।
दी
क्यों ऐसी शांति ?
ऊँची, नंगी उस चोटी पर
बर्फ़ के क़फ़न का
मुकुट
पहने झाँकता था
सूर्य…

और
मैं
समझा
मृत्यु ।