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शबनम हूँ सुर्ख़ फूल पे बिखरा हुआ हूँ मैं / बशीर बद्र
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17:08, 7 नवम्बर 2009
दो सख़्त खुश्क़ रोटियां कब से लिए हुए
पानी के इन्तिज़ार
,
में बैठा हुआ हूँ मैं
लादी
लाठी
उठा के घाट पे जाने लगे हिरन
कैसे अजीब दौर में पैदा हुआ हूँ मैं
द्विजेन्द्र द्विज
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