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गमन / आग्नेय

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{{KKRachna
|रचनाकार=आग्नेय
|संग्रह=मेरे बाद मेरा घर / आग्नेय; लौटता हूँ उस तक / आग्नेय
}}
{{KKCatKavita}}<Poem>
फूल के बोझ से
 
टूटती नहीं है टहनी
 
फूल ही अलग कर दिया जाता है
 
टहनी से
 
उसी तरह टूटता है संसार
 
टूटता जाता है संसार--
 
मेरा और तुम्हारा
 
चमत्कार है या अत्याचार है
 
इस टूटते जाने में
 
सिर्फ़ जानता है
टहनी से अलग कर दिया गया
 
फूल
</poem>
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