{{KKRachna
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
|संग्रह=दर्द आशोब / अहमद फ़राज़
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चन्द लम्हों मम्दूह<ref>क्षणोंप्रशंसित</ref>के लिए तूने मसीहाई<ref>इलाज</ref>कीफिर वही मैं हूँ वही उम्र है तन्हाई <ref>अकेलापन</ref>की
किस पे गु़ज़री न शबेमैंने कब की है तिरे काकुलो-हिज्रलब<ref>विरह बालों व होंठों </ref>की राततारीफ़<ref>प्रशंसा</ref>क़यामात मैंने कब लिक्खे क़सीदे<ref>प्रलयप्रशंसा</ref>तिरे रुख़सारों<ref>गालों की तरह</ref> केफ़र्क़ इतना है कि हमने सुख़न-आराईमैंने कब तेरे सरापा<ref>काव्य-रचनासिर से पाँव तक</ref>कीहिक़ायात<ref>कथाएँ</ref> कहींमैं ने कब शेर<ref>ग़ज़ल की दो पंक्तियाँ</ref> कहे झूमते गुलज़ारों <ref>उद्यानों</ref> केजाने दो दिन की महब्बत में में ये बहके हुए लोगकैसे अफ़साने बना लेते है दाराओं<ref>वीरों</ref> के
अपनी बाहों में सिमट आई है वो क़ौसेमैं कि शायर था मेरे फ़न <ref>कला</ref> की रवायत<ref>परंपरा</ref> थी यहीमुझको इक फूल नज़र आए तो तो गुलज़ार कहूँमुस्कुराती हुई हर आँख को क़ातिल<ref>वध करने वाला</ref> जानूँहर निगाहे-क़ुज़:ग़लतअन्दाज़ <ref>इंद्रभ्रम में डालने वाली दृष्टि</ref> को तलवार कहूँमेरी फ़ितरत<ref>स्वभाव</ref>थी कि मैं हुस्ने-धनुषबयाँ<ref>बात कहने का ढंग का सौंदर्य</ref>की ख़ातिरलोग तस्वीर ही खींचा किए अँगड़ाई हर हसीं लफ़्ज़ <ref>सुन्दर शब्द को</ref> को दर-मदहे-रुख़े-यार <ref>प्रेयसी के चेहरे कीप्रशंसा</ref> कहूँ
ग़ैरते-इश्क़मेरे दिल में भी खिले हैं तेरी चाहत के कँवलऐसी चाहत कि जो वहशी<ref>प्रेम का स्वाभिमानपागल</ref>बजा तानहो तो क्या-एक्या न करेमुझे गर हो भी तो क्या ज़ोमे-याराँ तवाफ़े-शो’ला<ref>मित्रों के कटाक्षअंगारों की परिक्रमा का गर्व</ref>तस्लीम तू है वो शम्अ कि पत्थर की भी परवा<ref>स्वीकार्यचिन्ता</ref>न करेबात करते हैं मगर सब उसी हरजाई कीमैं नहीं कहता कि तुझ-सा है न मुझ-सा कोईवरना शोरीदगी-ए-शौक़<ref>शौक़ का पागलपन</ref> तू दीवाना करे
उनको भूले हैं तो कुछ और परेशाँ<ref>दु:खी</ref>हैं ‘फ़राज़’अपनी दानिस्त<ref>जानकारी</ref>में दिल ने बड़ी दानाई <ref>समझदारी</ref>की </poem>
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