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मम्दूह / फ़राज़

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            मम्दूह<ref>प्रशंसित</ref>

मैंने कब की है तिरे काकुलो-लब<ref>बालों व होंठों </ref>की तारीफ़<ref>प्रशंसा</ref>
मैंने कब लिक्खे क़सीदे<ref>प्रशंसा</ref> तिरे रुख़सारों<ref>गालों की</ref> के
मैंने कब तेरे सरापा<ref>सिर से पाँव तक</ref>की हिक़ायात<ref>कथाएँ</ref> कहीं
मैं ने कब शेर<ref>ग़ज़ल की दो पंक्तियाँ</ref> कहे झूमते गुलज़ारों <ref>उद्यानों</ref> के
जाने दो दिन की महब्बत में में ये बहके हुए लोग
कैसे अफ़साने बना लेते है दाराओं<ref>वीरों</ref> के

मैं कि शायर था मेरे फ़न <ref>कला</ref> की रवायत<ref>परंपरा</ref> थी यही
मुझको इक फूल नज़र आए तो तो गुलज़ार कहूँ
मुस्कुराती हुई हर आँख को क़ातिल<ref>वध करने वाला</ref> जानूँ
हर निगाहे-ग़लतअन्दाज़ <ref>भ्रम में डालने वाली दृष्टि</ref> को तलवार कहूँ
मेरी फ़ितरत<ref>स्वभाव</ref>थी कि मैं हुस्ने-बयाँ<ref>बात कहने का ढंग का सौंदर्य</ref> की ख़ातिर
हर हसीं लफ़्ज़ <ref>सुन्दर शब्द को</ref> को दर-मदहे-रुख़े-यार <ref>प्रेयसी के चेहरे की प्रशंसा</ref> कहूँ

मेरे दिल में भी खिले हैं तेरी चाहत के कँवल
ऐसी चाहत कि जो वहशी<ref>पागल</ref> हो तो क्या-क्या न करे
मुझे गर हो भी तो क्या ज़ोमे-तवाफ़े-शो’ला<ref> अंगारों की परिक्रमा का गर्व</ref>
तू है वो शम्अ कि पत्थर की भी परवा<ref>चिन्ता</ref> न करे
मैं नहीं कहता कि तुझ-सा है न मुझ-सा कोई
वरना शोरीदगी-ए-शौक़<ref>शौक़ का पागलपन</ref> तू दीवाना करे

शब्दार्थ
<references/>