"वाबस्तगी / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
'''वाबस्तगी<ref>बँधाव</ref>''' | '''वाबस्तगी<ref>बँधाव</ref>''' | ||
− | आ गई फिर वही पहाड़-सी रात दोश<ref>काँधे</ref> पर हिज्र<ref>विरह</ref> की सलीब<ref>चौपारे के आकाए की सूली</ref> लिए | + | आ गई फिर वही पहाड़-सी रात |
+ | दोश<ref>काँधे</ref> पर हिज्र<ref>विरह</ref> की सलीब<ref>चौपारे के आकाए की सूली</ref> लिए | ||
हर सितारा हलाके-सुबहे-तलब<ref>प्रभात की इच्छा में घायल</ref> | हर सितारा हलाके-सुबहे-तलब<ref>प्रभात की इच्छा में घायल</ref> | ||
मंज़िले-ख़्वाहिशे-हबीब लिए <ref>प्रिय के गंतव्य की इच्छा</ref> | मंज़िले-ख़्वाहिशे-हबीब लिए <ref>प्रिय के गंतव्य की इच्छा</ref> | ||
+ | |||
इससे पहले भी शामे-वस्ल <ref>मिलन की संध्या</ref>के बाद | इससे पहले भी शामे-वस्ल <ref>मिलन की संध्या</ref>के बाद | ||
कारवाँ-ए-दिलो-निगाह<ref>दिल और दृष्टि का कारवाँ</ref>चला | कारवाँ-ए-दिलो-निगाह<ref>दिल और दृष्टि का कारवाँ</ref>चला | ||
पंक्ति 26: | पंक्ति 28: | ||
फिर भी रौशन है बज़्मे-रस्मे-वफ़ा<ref>वफ़ादारी की परंपरा की सभा</ref> | फिर भी रौशन है बज़्मे-रस्मे-वफ़ा<ref>वफ़ादारी की परंपरा की सभा</ref> | ||
फिर भी हैं कुछ चराग़ ताबिंदा<ref>प्रकाशमान</ref> | फिर भी हैं कुछ चराग़ ताबिंदा<ref>प्रकाशमान</ref> | ||
− | |||
वही क़ातिल<ref>वध करने वाला</ref>जो अपने हाथों से | वही क़ातिल<ref>वध करने वाला</ref>जो अपने हाथों से | ||
− | हर मसीहा<ref>मुर्दों को ज़िंदा करने वाला</ref> | + | हर मसीहा<ref>मुर्दों को ज़िंदा करने वाला</ref>को दार करते <ref>सूली पर चढ़ाते हैं</ref>हैं |
− | को दार करते <ref>सूली पर चढ़ाते हैं</ref>हैं | + | |
फिर उसी की मुराज़अत <ref>प्रत्यागमन</ref>के लिए | फिर उसी की मुराज़अत <ref>प्रत्यागमन</ref>के लिए | ||
हश्र<ref>महाप्रलय</ref>तक इंतज़ार करते हैं | हश्र<ref>महाप्रलय</ref>तक इंतज़ार करते हैं | ||
</poem> | </poem> | ||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
18:29, 25 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
वाबस्तगी<ref>बँधाव</ref>
आ गई फिर वही पहाड़-सी रात
दोश<ref>काँधे</ref> पर हिज्र<ref>विरह</ref> की सलीब<ref>चौपारे के आकाए की सूली</ref> लिए
हर सितारा हलाके-सुबहे-तलब<ref>प्रभात की इच्छा में घायल</ref>
मंज़िले-ख़्वाहिशे-हबीब लिए <ref>प्रिय के गंतव्य की इच्छा</ref>
इससे पहले भी शामे-वस्ल <ref>मिलन की संध्या</ref>के बाद
कारवाँ-ए-दिलो-निगाह<ref>दिल और दृष्टि का कारवाँ</ref>चला
अपनी-अपनी सलीब उठाए हुए
हर कोई सू-ए-क़त्लगाह चला<ref>वध-स्थल की ओर</ref>चला
कितनी बाहों की टहनियाँ टूटीं
कितने होंठों के फूल चाक<ref>विदीर्ण</ref> हुए
कितनी आँखों से छिन गए मोती
कितने चहरों के रंग ख़ाक<ref>धूल</ref>हुए
फिर भी वीराँ<ref>निर्जन</ref>नहीं है कू-ए-मुराद<ref>इच्छाओं की नगरी</ref>
फिर भी शब ज़िंदादार <ref>रातों को जागने वाले</ref>हैं ज़िंदा
फिर भी रौशन है बज़्मे-रस्मे-वफ़ा<ref>वफ़ादारी की परंपरा की सभा</ref>
फिर भी हैं कुछ चराग़ ताबिंदा<ref>प्रकाशमान</ref>
वही क़ातिल<ref>वध करने वाला</ref>जो अपने हाथों से
हर मसीहा<ref>मुर्दों को ज़िंदा करने वाला</ref>को दार करते <ref>सूली पर चढ़ाते हैं</ref>हैं
फिर उसी की मुराज़अत <ref>प्रत्यागमन</ref>के लिए
हश्र<ref>महाप्रलय</ref>तक इंतज़ार करते हैं