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वाबस्तगी / फ़राज़

1 byte removed, 12:59, 25 नवम्बर 2009
हर सितारा हलाके-सुबहे-तलब<ref>प्रभात की इच्छा में घायल</ref>
मंज़िले-ख़्वाहिशे-हबीब लिए <ref>प्रिय के गंतव्य की इच्छा</ref>
 
इससे पहले भी शामे-वस्ल <ref>मिलन की संध्या</ref>के बाद
कारवाँ-ए-दिलो-निगाह<ref>दिल और दृष्टि का कारवाँ</ref>चला
फिर भी रौशन है बज़्मे-रस्मे-वफ़ा<ref>वफ़ादारी की परंपरा की सभा</ref>
फिर भी हैं कुछ चराग़ ताबिंदा<ref>प्रकाशमान</ref>
 
वही क़ातिल<ref>वध करने वाला</ref>जो अपने हाथों से
हर मसीहा<ref>मुर्दों को ज़िंदा करने वाला</ref>को दार करते <ref>सूली पर चढ़ाते हैं</ref>हैं
फिर उसी की मुराज़अत <ref>प्रत्यागमन</ref>के लिए
हश्र<ref>महाप्रलय</ref>तक इंतज़ार करते हैं
</poem>
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