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उलट दो बस तुम अपनी बात,
मरूँ मैं करके अपना घात।"
:कहा तब नृप ने किसी प्रकार--
:"मरो तुम क्यों, भोगो अधिकार।
:मरूँगा तो मैं अगति-समान,
:मिलेंगे तुम्हें तीन वरदान!"
:देख ऊपर को अपने आप
:लगे नृप करने यों परिताप--
:"दैव, यह सपना है कि प्रतीति?
:यही है नर-नारी की प्रीति?
:किसीको न दें कभी वर देव;
:वचन देना छोड़ें नर-देव।
:दान में दुरुपयोग का वास,
:किया जावे किसका विश्वास?
:जिसे चिन्तामणि-माला जान
:हृदय पर दिया प्रधानस्थान;
:अन्त में लेकर यों विष-दन्त
:नागिनी निकली वह हा हन्त!
:राज्य का ही न तुझे था लोभ,
:राम पर भी था इतना क्षोभ?
:न था वह निस्पृह तेरा पुत्र?
:भरत ही था क्या मेरा पुत्र?
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