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दिल में ग़म का शरार रहने दे / लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी
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02:27, 22 फ़रवरी 2010
शौक़ को बेक़रार रहने दे
आगही<ref>सावधानी</ref> भी तो हासिले-ग़म<ref>
दुख की प्राप्ति
</ref> है
दिल पे ग़म का ग़ुबार रहने दे
यह शबे-इन्तज़ार रहने दे
अपनी ग़ज़लों के आबगीने
<ref>बूँद</ref>
में
‘चाँद’ तस्वीरे-यार रहने दे
</poem>
{{KKMeaning}}
द्विजेन्द्र द्विज
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