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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
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{{KKCatKavita‎}}<Poempoem>
धीरे-धीरे हर बात पुरानी हो जाती है
चाय की चुस्की
आदतन ही बीत जाएगा दिन
जैसे बीत गए पचास बरस।
 
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