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आदतन ही बीत जाएगा दिन / लाल्टू
Kavita Kosh से
धीरे-धीरे हर बात पुरानी हो जाती है
चाय की चुस्की
प्रेमी का बदन
और अधकचरे इंकलाब
आदत पड़ जाती है चिताओं से बातचीत करने की
पुराने पड़ जाते हैं ख़याल
फिर कहना पड़ता है ख़ुद से
चलो चाय बना लें
पेट में डालने के लिए बिस्किट गिन कर दो ले लें
एक दिन आएगा जब लिखना चाहूंगा आत्म-तर्पण
शोक-गीत लिखने के लिए उंगलियाँ होंगी बेचैन
तब तक आदतन लोग देखेंगे मेरी कविताएँ जी-मेल-याहू पर
और आदतन ही बिना पढ़े आगे बढ़ जाएंगे
किसी को न ध्यान होगा कि कविताएँ आईं नहीं
आदतन ही बीत जाएगा दिन
जैसे बीत गए पचास बरस।