भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रणय कुंज / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= स्वर्णधूलि / सुमित्र…)
 
 
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
करते आकुल मर्मर।
 
करते आकुल मर्मर।
 
:चिर विरह मिलन में भर
 
:चिर विरह मिलन में भर
:तुम प्रणय कुंज में जब आई
+
:तुम प्रणय कुंज में जब आई।
 
</poem>
 
</poem>

13:06, 31 मई 2010 के समय का अवतरण

तुम प्रणय कुंज में जब आई
पल्लवित हो उठा मधु यौवन
मंजरित हृदय की अमराई।
मलय हुआ मद चंचल
लहराया सरसी जल
अलि गूँज उठे पिक ध्वनि छाई।
अब वह स्वप्न अगोचर
मर्म व्यथाऽ, मथित करती अंतर
प्राणों के दल झर झर
करते आकुल मर्मर।
चिर विरह मिलन में भर
तुम प्रणय कुंज में जब आई।