भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रणय कुंज / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम प्रणय कुंज में जब आई
पल्लवित हो उठा मधु यौवन
मंजरित हृदय की अमराई।
मलय हुआ मद चंचल
लहराया सरसी जल
अलि गूँज उठे पिक ध्वनि छाई।
अब वह स्वप्न अगोचर
मर्म व्यथाऽ, मथित करती अंतर
प्राणों के दल झर झर
करते आकुल मर्मर।
चिर विरह मिलन में भर
तुम प्रणय कुंज में जब आई।