Last modified on 31 मई 2010, at 13:06

प्रणय कुंज / सुमित्रानंदन पंत

तुम प्रणय कुंज में जब आई
पल्लवित हो उठा मधु यौवन
मंजरित हृदय की अमराई।
मलय हुआ मद चंचल
लहराया सरसी जल
अलि गूँज उठे पिक ध्वनि छाई।
अब वह स्वप्न अगोचर
मर्म व्यथाऽ, मथित करती अंतर
प्राणों के दल झर झर
करते आकुल मर्मर।
चिर विरह मिलन में भर
तुम प्रणय कुंज में जब आई।