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10:10, 19 जून 2010 के समय का अवतरण
आज सुबह से मन भारी है|
ये भी कैसी लाचारी है|
पहले बात करूँ तो कैसे,
कुछ मेरी भी खुद्दारी है|
अपनी ही दुनिया तक सोचूँ,
ये दुनिया से गद्दारी है|
चांद चांदनी ही तो देगा,
सब को ही हस्ती प्यारी है|
अपनी आँखों से देखा है,
हर कोई चश्माधारी है|
नाज़ुक शेर कहूँ तो कैसे,
मेरी पत्थर से यारी है|
शाम हुई है विजय, उठो अब,
घर जाने की तैयारी है|