भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= साँवर दइया |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>आकाश में
गिद्धों की तरह तिर रहे हैं
हवाई जहाजजहाज़-हैलीकॉप्टर
आग में ओटी हुई बाटी
उथलना भूल जाती हैं
चूल्हे के पास बैठी हुई औरतें
धमाके......धमाके....धमाके...धमाके
अब बाटी उथलने से क्या होगा ?
अब तो